ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जनकरने वाले उद्यमों का भविष्य अनिश्चित

The future of the industry that emits greenhouse gases is uncertain
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नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटीने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के साथ मिलकर विभिन्न उद्यमों के कार्बन फुटप्रिंट और उन कंपनियों में निवेश के संभावित जोखिमों के बीच अंतर्संबंध स्थापित करने की दिशआ में एक अध्ययनकिया है। इस समय पूरा विश्व एक सतत् भविष्य और आर्थिकी की ओर देख रहा है, जिसमें कंपनियां अपना कार्बन फुटप्रिंट घटाने के प्रयास कर रही हैं। कार्बन फुटप्रिंट का संबंध उनके द्वारा किए जाने वाले उस उत्सर्जन से है, जो प्रदूषण बढ़ाने में एक प्रमुख कारक होता है। ऐसे में, जो उद्यम ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का अत्यधिक उत्सर्जन कर रहेहैं, उनका भविष्य अनिश्चित माना जा रहा है।

इस शोध के लिए दोनों प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधार्थियों ने अमेरिकी बाजार में सूचीबद्ध 200 सबसे बड़ी कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। कंपनियों के कार्बन फुटप्रिंट, उनके द्वारा किए जाने वाले प्रत्यक्ष जीएजची उत्सर्जन जैसे पहलुओं पर उनका आकलन किया गया। इस शोध टीम में आईआईटी गुवाहाटी के गणित विभाग और मेहता फैमिली स्कूल ऑफ डाटा साइंस एंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में प्रोफेसर सिद्धार्थ प्रतिम चक्रवर्ती के अलावा आईआईएम बेंगलूर में वित्त एवं लेखा विभाग के प्रोफेसर संकर्षण बासु और आईआईएसईआर पुणे में बीएस-एमएस के छात्र सूर्यदीप्तो नाग शामिल रहे।

अपने अध्ययन में इन शोधार्थियों ने पाया कि उन्होंने जिन कंपनियों का आकलन किया, उन्होंने वर्ष 2016 से 2019 के बीच अपने कार्बन उत्सर्जन में खासी कटौती की। उन्होंने पाया कि कंपनी के आकार और राजस्व का उनके कार्बन फुटप्रिंट से बहुत सकारात्मक अंतर्संबंध है। इन कंपनियों ने अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख करने में काफी खर्च किया है।

इस शोध की महत्ता की ओर रेखांकित करते हुए प्रो. सिद्धार्थ प्रतिम चक्रवर्ती ने कहा, ‘ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और अन्य वित्तीय आंकड़ों (जैसे राजस्व, ऋण और बुक वैल्य आदि) के साथ शेयरों पर वार्षिक प्रतिफल का आकलन करते हुए हमने पाया कि शेयर प्रतिफल में कार्बन जोखिम प्रतिफल विद्यमान रहता है, जिसका अर्थ है कि कार्बन उत्सर्जन का अधिक स्तर लघु अवधि में शेयर की कीमतों में बढ़ोतरी करता है। इसका अर्थ यही है कि ऊंचा कार्बन फुटप्रिंट लघु अवधि में निवेशकों को बेहतर प्रतिफल देता है।’

हालांकि समय के साथ कई पहलुओं में परिवर्तन भी आ रहा है। प्रो. चक्रवर्ती इसे इस प्रकार समझाते हैं, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान जलवायु वित्त को लेकर व्यापक शोध हुए हैं और दुनिया भर में शोधकर्ताओं ने कार्बन जोखिम प्रीमियम की उपस्थिति की स्वतंत्र रूप से पुष्टि की है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव लगातार प्रत्यक्ष दिखते जा रहे हैं, उसे देखते हुए दुनिया भर में सरकारें उन कंपनियों पर भारी कर लगा या अन्य प्रतिबंध लगा सकती हैं, जो बड़े पैमाने पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा होता है।’ ऐसे में इन कंपनियों में निवेश भी जोखिम ही बढ़ाएगा। इस दिशा में यह अध्ययन काफी प्रकाश डालता है।

यह शोध ‘आर्काइव’ लेखकोश में प्रकाशित हुआ है। यह अमेरिकी विश्वविद्यालय कॉर्नेल यूनिवर्सिटी की टीम द्वारा संचालित शोध-अनुसंधान साझा करने वाला एक महत्वपूर्ण मंच है। यह इंटरनेट पर मौजूद गणित, भौतिकी, रसायन, खगोलिकी, संगणिकी, मात्रात्मक जीवविज्ञान, सांख्यिकी और मात्रात्मक वित्त से जुड़े शोध को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित ओपन एक्सेस आर्काइव है। यानी इस पर मौजूद सामग्री को कोई भी आसानी से पढ़ सकता है। (इंडिया साइंस वायर)


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