नई दिल्ली: भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष में सूक्ष्मजीवों के संवर्द्धन के लिए एक मॉड्युलर उपकरण विकसित किया है। यह नया मॉड्युलर उपकरणबाहरी अंतरिक्ष में जैविक प्रयोगकार्यों में उपयोगी हो सकता है।
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि कैसे इस मॉड्युलर उपकरण का उपयोग कम से कम मानवीय हस्तक्षेप के साथस्पोरोसारसीना पेस्टुरी नामक जीवाणु के विकास को सक्रिय करने और उसे कई दिनों तक ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है। यह अध्ययन शोध पत्रिका एक्टा एस्ट्रोनॉटिका में प्रकाशित किया गया है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस तरह के रोगाणु अंतरिक्ष के चरम वातावरण में कैसे व्यवहार करते हैं। इससे वर्ष 2022 में लॉन्च होने वाले भारत के पहले चालक दल वाले अंतरिक्ष यान ‘गगनयान’ जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि मिल सकती है। हाल के वर्षों में, वैज्ञानिक तेजी से लैब-ऑन-चिप के उपयोग की खोज कर रहे हैं, जो ऐसे प्रयोगों के लिए विभिन्न विश्लेषणों का समावेश किसी एक एकीकृत चिप में करने की राह आसान कर सके। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रयोगशाला की तुलना में बाहरी अंतरिक्ष के लिए ऐसे प्लेटफार्मों को डिजाइन करने में अतिरिक्त चुनौतियां होती हैं।
आईआईएससी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर और इस अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता कौशिक विश्वनाथन बताते हैं, “इसे पूरी तरह आत्मनिर्भर होना चाहिए।” “इसके अलावा, आप अंतरिक्ष में उन परिचालन परिस्थितियों की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं, जैसी किसी सामान्य प्रयोगशाला में होती हैं। उदाहरण के लिए वहाँ ऐसी व्यवस्था संभव नहीं होगी, जिसमें 500 वॉट बिजली की आवश्यकता हो।”
आईआईएससी और इसरो के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इस उपकरण में, प्रयोगशाला में उपयोग किए जाने वाले स्पेक्ट्रोफोटोमीटर के समान ऑप्टिकल घनत्व या प्रकाश के प्रकीर्णन को मापकर बैक्टीरिया के विकास को ट्रैक करने के लिए एक एलईडी और फोटोडायोड सेंसर के संयोजन का उपयोग किया गया है।इसमें विभिन्न प्रयोगों के लिए अलग-अलग खंड होते हैं। प्रत्येक खंड या ‘कैसेट’ में एक कक्ष होता है, जहाँ बैक्टीरिया एक सुक्रोज सॉल्यूशन में बीजाणु के रूप में निलंबित होता है। इस तरह, बैक्टीरिया की विकास प्रक्रिया को चलायमान करने के लिए दूर से ही एक स्विच दबाकर उसमें पोषक माध्यम को मिश्रित किया जा सकता है।प्रत्येक कैसेट से डेटा स्वतंत्र रूप से एकत्र और संग्रहीत किया जाता है। तीन कैसेट को एक ही कार्ट्रिज में जोड़ा गया है, जो सिर्फ 1W से कम बिजली की खपत करता है। शोधकर्ताओं की कल्पना है कि एक पूर्ण पेलोड, जो एक अंतरिक्ष यान में जा सकता है, उसमें चार ऐसे कार्ट्रिज हो सकते हैं, जो 12 स्वतंत्र प्रयोग करने में सक्षम होंगे।
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं को यह भी सुनिश्चित करना था कि उपकरण लीक-प्रूफ हो और लक्ष्य भी प्रभावित न हो। आईआईएससी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और एक अन्य वरिष्ठ शोधकर्ता आलोक कुमार कहते हैं – “बैक्टीरिया के बढ़ने के लिए यह एक गैर-पारंपरिक वातावरण होता है। यह पूरी तरह से सील है और इसका आयाम बेहद कम है। हमें यह देखना था कि क्या हम इसमें लगातार बैक्टीरिया को विकसित करने में सक्षम हो सकते हैं।” उन्होंने कहा कि “हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि एलईडी चालू और बंद होने से अधिक गर्मी उत्पन्न न हो, जो बैक्टीरिया की वृद्धि से जुड़ी विशेषताओं को बदल सकती है।” एक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके, शोधकर्ताओं ने यह पुष्टिकी है कि उपकरण के भीतर बीजाणु; रॉड के आकार के बैक्टीरिया में रूपांतरित हो सकते हैं, जैसा कि वे प्रयोगशाला में सामान्य परिस्थितियों में होते हैं।
विश्वनाथन कहते हैं, “अब जब हम यह जान गए हैं कि यह यह उपकरण कारगर है, तो हमने पहले ही अगले चरण की शुरुआत कर दी है, और उपकरण का एक फ़्लाइट मॉडल तैयार कर रहे हैं।” भौतिक स्थान, जिसकी आवश्कता उपकरण को हो सकती है, और गुरुत्वाकर्षण के कारण कंपन एवं त्वरण जैसे तनावों का अनुकूलन इसमें शामिल है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उपकरण को अन्य जीवों – जैसे कि कीड़ो और गैर-जैविक प्रयोगों के अध्ययन के लिए भी अनुकूलित किया जा सकता है। कुमार बताते हैं, “पूरा विचार भारतीय शोधकर्ताओं के लिए एक मॉडल मंच विकसित करने का था।” “अब जब इसरो एक महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत कर रहा है, तो उसका अपने घरेलू समाधानों के साथ आगे बढ़ना बेहतर होगा।” (इंडिया साइंस वायर)