स्थापित हुआ समुद्र-जल को पेयजल में बदलने वाला संयंत्र

Plant to convert sea-water into drinking water established
तमिलनाडु के नारिप्पिय्यूर गाँव में लगाया गया सोलर थर्मल फॉरवर्ड ओमेसिस सी-वॉटर डिसैलिजाइजेशन सिस्टम
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नई दिल्ली: समुद्र अथाह जलराशि के स्रोत हैं।लेकिन, यह एक विडंबना ही कही जाएगी कि दुनियाभर में तटीय इलाके ही पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। इसका कारण यह है कि तमाम खनिज-लवणों से युक्त समुद्र का पानी खारा होता है। ऐसे में, इस पानी को परिशोधित करके उसे पीने योग्य बनाने के प्रयास हाल के दिनों में तेजी से बढ़े हैं। ऐसा ही एक सफल प्रयास देश के दक्षिणवर्ती राज्य तमिलनाडु में फलीभूत होता दिख रहा है। तमिलनाडु के दक्षिण पूर्वी हिस्से में स्थित रामनाथपुरम जिले के नारिप्पिय्यूर गाँव में इससे जुड़ा एकप्रयोग किया गया है। इस सूखा प्रभावित इलाके में समुद्र के जल से रोजाना 20,000 लीटर पेयजल तैयार करने का उपक्रम किया जा रहा है। इसके लिए यहाँ एक सोलर थर्मल फॉरवर्डओसमोसिस (एफओ) सी-वॉटर डिसैलिजाइजेशन सिस्टम की स्थापना की गई है। इस प्रयोग की सफलता, तटीय इलाकों में बसने वाले लोगों की प्यास बुझाने की बुनियाद रख सकती है।

उपरोक्त गाँव की आबादी 10,000 लोगों की है और इस सिस्टम के माध्यम से गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन उत्तम गुणवत्ता वाला दो लीटर पेयजल उपलब्ध कराने की योजना है। इससे गाँव कोपेयजल संकट से सफलतापूर्वक उबरने में मदद मिल सकती है। इस एफओ सिस्टम की कई विशेषताएं हैं। मसलन इसमें समुद्र के पानी से अपेक्षाकृत अधिक पेयजल प्राप्त हो रहा है। समूची प्रक्रिया को संपादित करने में ऊर्जा की खपत भी कम होती है। एफओ सिस्टम के मेंब्रेन की प्रभावी और आसान धुलाई भी हो जाती है। इससे न केवल मेंब्रेन अधिक समय तक चलती है, अपितु इसकी परिचालन लागत भी कम है।

इस एफओ सिस्टम का विकास और इसकी स्थापना आईआईटी, मद्रास और एंपीरियल-केजीडीएस रिन्यूएबल एनर्जी के संयुक्त प्रयास का परिणाम है।

रामनाथपुरम जिला तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्व किनारे पर स्थित है, और यह समुद्रजल के अत्यंत खारेपन और भूजल के स्रोतों की किल्लत के कारण पेयजल के संकट से जूझ रहा है। जिले में 4,23,000 हेक्टेयर लंबी तटरेखा है जो राज्य में पड़ने वाली समस्त 265 किलोमीटर तटरेखा की एक चौथाई है।

जल तकनीक से जुड़ी जमीनी स्तर की इस कवायद को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी(डीएसटी) विभाग से सहायता मिली है। विभाग ने इसके लिए उस कंसोर्सिशयम यानी समूह को पूरी सहायता प्रदान की, जिसमें आईआईटी मद्रास, केजीआईएसएल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एंपीरियल-केजीजीएस रिन्यूएबल एनर्जी और आईसीटी मुंबई शामिल रहे।

एक अध्ययन के अनुसार भारत में 71% जल संसाधन की मात्रा देश के 36% क्षेत्रफल में सिमटी है और बाकी 64% क्षेत्रफल के पास देश के 29% जल संसाधन ही उपलब्ध हैं।  कई अन्य अध्ययनों में यह बताया गया है कि निकट भविष्य में पानी कीमाँग और पूर्ति के बीच अंतर चिंताजनक रूप ले सकता है।

ऐसे में,सी-वॉटर एफओ जैसी तकनीक की उपयोगिता बहुत बढ़ जाती है।

यह तकनीक देश के तटीय इलाकों में पेयजल की समस्या को समाप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जिसकी तटरेखा खासी लंबी है। भारत की तट रेखा तकरीबन 7,500 किलोमीटर लंबी है और कई राज्यों से गुजरती है, जिनमें से तमाम क्षेत्र पेयजल के लिए संघर्षरत हैं। ऐसे में यह प्रभावी एवं किफायती तकनीक इन क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति की एक बड़ी समस्या का समाधान करने की संभावना रखती है। (इंडिया साइंस वायर)


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