डॉ अनीता : एक अपराजिता

Dr. Anita
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मैं डॉ .अनीता एक कवयीत्री, लेखिका और अध्यापिका हूं। मेरी कई कविताएं, आर्टिकल और शार्ट स्टोरी किताबों और मैगजीन में छपी है । पूना कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स साइंस एंड कॉमर्स पुणे के हिंदी विभाग, विद्यार्थी विकास मंडल, आइक्यूएसी एवं एडूथोंन,स्टे फीचर्स, स्कॉलर ट्री पालिंगो ,विन कनेक्ट के संयुक्त तत्वधान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस तथा मराठी राजभाषा दिवस के उपलक्ष में अंतरराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन (भाषा और रोजगार के अवसर) जर्नी एस्पायरिंग टू इंस्पायरिंग और अपराजिता अवार्ड 26 फेब्रुवारी 2023 को मनाया गया । इसके लिए सभी ऑर्गेनाइजर और सपोर्टर का बहुत-बहुत आभार जब यह स्पेशल गेस्ट और अपराजिता अवार्ड दे रहे थे मेरे खुद के जीवन की पूरी जर्नी मेरे आंखों के सामने जीवित होने लगी स्पेशल गेस्ट का अवार्ड लेते समय बहुत ही खुशी हुई ।

मैं यह अवार्ड अपनी बेटी को समर्पित करना चाहती हूं क्योंकि उसी के कारण आज मैं एक लेक्चरर लेखिका कवयित्रीऔर मार्गदर्शिका के रूप में काम कर रही हूं । भविष्य में दिव्यांग लोगों की, जो बच्चे गांव से शहर में नौकरी की तलाश में आते हैं उनकी और महिलाओं की मदद करने का इरादा है आज का यह कार्यक्रम बहुत ही अच्छा रहा बहुत कुछ सीखने के लिए मिला और भविष्य में ऐसे ही बहुत कुछ सीखने के लिए मिलेगा यह उम्मीद टीम से करते हैं और आशा करते हैं कि यह ऐसे ही दिन दिन-ब-दिन तरक्की करें और नए-नए कार्यक्रमों का आयोजन कर सभी का उत्साह बढ़ाएं। सभी का फिर से एक बार बहुत-बहुत धन्यवाद |

मुझे आमंत्रित करने के लिए अमंत्रकों का बहुत बहुत आभार ,
अपराजिता अवार्ड की जब सुरुवात हुई और महिलाओं ने अपने अनुभव बताए तब मेरी पूरी जर्नी मेरे आँखों के सामने प्रत्यक्ष गुजरने लगी । बहुत ही अच्छा कार्यक्रम था । बहुत कुछ सीखने मिला ।ऐसे ही विविध कार्यक्रमों का आयोजन होता रहे यही हमारी कामना है । बहुत बहुत धन्यवाद|

डॉ अनीता जठार के बारे मैं थोडी और जानकरी

सन 1996 अनीता जी की शादी रमेश जी से हुई 1998 को एक बेटा और उसके बाद 1999 में एक लड़की को जन्म दिया ,लेकिन बेटी मेंटल रिटारडेड पैदा हुई ।इस कारण मेरी मानसिक स्थिति बहुत ही खराब हो गई । पति रमेश एसआरपीएफ में काम करते थे वह हमेशा ड्यूटी के लिए बाहर ही रहते थे । दोनों बच्चों को अकेले कैसे संभाल पाती ? पर फिर भी अपने दोनों बच्चों को पाल पोस कर बड़ा तो करना था। ये करते समय मैं हमेशा यही सोचती की बेटी किस प्रकार से ठीक हो सकती है। हमेशा उसे लेकर इस अस्पताल से उस अस्पताल भागती रहती। ताकि कुछ चमत्कार हो जाए और मेरी बेटी ठीक हो जाए।जो भी किसी ने कुछ बताया वह किया । दावा -दुवा दोनों को आजमाती रही । इस उम्मीद में 7 साल लगी रही की वो कुछ तो हिले डुले, कुछ तो करे ,कभी तो हँसे ,रोए, चले ,बोले । 7 साल के उपरांत जब लगा की अब बेटी की स्थिति थोड़ी ठीक ठाक है तो क्यों न आगे की पढ़ाई कर ली जाए। मैंने आगे की पढ़ाई का और अपने पैरों पर खड़े होने का निर्णय लिया । पर अपने ही अपने दुश्मन होते हैं इसका प्रत्यक्ष अनुभव मैंने इस दौरान किया ।

रिश्तेदारों ने ही कहना शुरू कर दिया, तुम्हारी बेटी तो ऐसी है , पढ़ लिख कर क्या करेगी तू ? क्या फायदा उस पढ़ाई का ? बेटी को कहां छोड़ेगी ?उसे कौन संभालेगा ? हे भगवान कितने सारे सवाल । पर मदद किसी की नहीं । मगर इरादा पक्का था लोगों की बाते ना सुनते हुए आगे की पढ़ाई पूरी करने का निश्चय किया। इसमें मेरे पति और मेरे बेटे रामकृष्ण ने मेरा बहुत साथ दिया ।आज मैं बीए B.Ed m.a. एम फील डिग्री धारक हूं। मैं आज कॉलेज में पढ़ाती हूं। जरूरतमंदों को मार्गदर्शन करती हूं। आज भी मेरी बेटी की मानसिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है ,पर फिर भी 25 फरवरी 2020 को 22 को एसएनडीटी विश्वविद्यालय की पीएचडी पदवी लेकर यह सिद्ध किया की अगर आपका इरादा पक्का है तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है ।जीवन में अगर आपको कुछ पाना है तो आपका इरादा पक्का होना चाहिए । क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती |


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