नई दिल्ली: एक नये अध्ययन में भारत और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने प्लूटो की सतह पर वायुमंडलीय दबाव के सटीक मान का पता लगाया है। वैज्ञानिकों नेपृथ्वी के समुद्र तल के औसत वायुमंडलीय दबाव की तुलना में प्लूटो की सतह पर80 हजार गुना कम वायुमंडलीय दबाव होने का अनुमान लगायाहै। वायुमंडलीय दबाव की गणना प्लूटो द्वारा 06 जून 2020 को घटित तारा प्रच्छादन(Steller Occultation) के अवलोकन से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर की गई है।
किसी खगोलीय पिण्ड और प्रेक्षक (दर्शक) के बीच अन्य पिण्ड से उस पिण्ड के पूरी तरह छिप जाने या कहें कि प्रेक्षक की दृष्टि से उस पिण्ड के ओझल होने की घटना तारा प्रच्छादन (Steller Occultation) कहलाती है। ये दुर्लभ खगोलीय घटनाएं होती हैं; नई जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए खगोल-वैज्ञानिक जिन पर पैनी नज़र रखते हैं। इस अध्ययन में,उतराखंड के देवस्थल, नैनीताल में स्थित 3.6मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीओटी) (भारत के सबसे बडे ऑप्टिकल टेलीस्कोप) और 1.3मीटर देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीएफओटी) का उपयोग किया गया है।
वर्ष 1988 और 2016 के बीच प्लूटो द्वारा किए गए ऐसे बारह तारकीय प्रच्छादनों से संबंधित आँकड़ोंमें इस अवधि के दौरान वायुमंडलीय दबाव में तीन गुना मोनोटोनिक वृद्धि देखी गई है। नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (ARIES)के शोधकर्ताओं समेत वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने प्लूटो की सतह पर वायुमंडलीय दबाव के सटीक मूल्यांकन के लिए अपने अवलोकनों में प्रयुक्त परिष्कृत उपकरणों से प्राप्त सिग्नल-टू-शोर अनुपात प्रकाश वक्र का उपयोग किया है। यह पृथ्वी पर औसत समुद्र तल पर वायुमंडलीय दबाव से 80 हजारगुना कम – अर्थात 12.23 माइक्रोबार पाया गया है।
इस अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2015 के मध्य से प्लूटो का वायुमंडल अपनेपठारी चरण (plateau phase) में शीर्षबिंदु के करीब है। वैज्ञानिकों ने इस अवधारणा को प्लूटो वाष्पशील परिवहन मॉडल द्वारा पूर्व में आकलित मॉडल मूल्यों के अनुरूप बताया है। शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि यह प्रच्छादनविशेष रूप से सामयिक था, क्योंकि यह प्लूटो के वायुमंडल के विकास के मौजूदा मॉडलों की वैधता का परीक्षण कर सकता है।
यह अध्ययन पूर्व के उन निष्कर्षों की भी पुष्टि करता है कि प्लूटो पर बड़े डिप्रेशन के कारण इस ग्रह पर ऐसी तीव्र मौसमी घटनाओं से घिरा है, जिन्हें स्पूतनिक प्लैनिटिया के रूप में जाना जाता है। प्लूटो के ध्रुव दशकों तक स्थायी सूर्य के प्रकाश या अंधेरे में 248 साल की लंबी कक्षीय अवधि में बने रहते हैं, जिससे इसके नाइट्रोजन वातावरण पर तीव्र प्रभाव पड़ता है, जो मुख्य रूप से सतह पर नाइट्रोजन बर्फ के साथ वाष्प दबाव संतुलन द्वारा नियंत्रित होता है।
पृथ्वी से देखा जाता है कि प्लूटो अब गेलेक्टिक प्लेन से दूर जा रहा है तथा क्षुद्र ग्रह द्वारा हो रहे तारकीय प्रच्छादन अब तेजी से दुर्लभ होते जा रहे हैं। इस कारण यह घटना निर्णायक बन गई है।
इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में नागरहल्ली एम. अशोक, आनंदमयी तेज, गणेश पवार, शिशिर देशमुख, अमेया देशपांडे, सौरभ शर्मा, जोसेलिन डेसमार्स, मार्सेलो असाफिन, ब्रूनो सिकार्डी, जोस लुइस ऑर्टिज़, गुस्तावो बेनेडेटी-रॉसी, फेलिप ब्रागा-रिबास, रॉबर्टो विएरा-मार्टिंस पाब्लो सैंटोस-सांज, कृष्ण चंद, और भुवन सी. भट्ट शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स (एपीजेएल)’ में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)