परिचय:
शालिनी बसेड़िया (दीक्षित) का जन्म उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर झांसी में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा झांसी से ही प्राप्त की और आगे की उच्च शिक्षा के लिए संस्कृत विषय का चयन किया। स्नातक की उपाधि उन्होंने आर. कन्या डिग्री कॉलेज, झांसी से प्राप्त की, जबकि स्नातकोत्तर मथुरा प्रसाद महाविद्यालय, कौचजालौन (उत्तर प्रदेश) से पूरा किया। इसके पश्चात उन्होंने बी.एड की डिग्री कानपुर विश्वविद्यालय से तथा एम.एड की डिग्री नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय, प्रयागराज से प्राप्त की। वर्तमान में वे प्रयागराज स्थित सिटीजन गर्ल्स कॉलेज, नैनी में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
शालिनी बसेड़िया (दीक्षित) न केवल एक शिक्षिका हैं बल्कि एक संवेदनशील लेखिका, कवयित्री और समाजसेविका भी हैं। उन्हें गायन, लेखन, कविता पाठन, बागवानी, समाज सेवा तथा पुस्तक पाठन का गहरा शौक है। उनके व्यक्तित्व में शिक्षा, संस्कृति और संवेदना का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
विभिन्न संस्थाओं में साहित्यिक योगदान –
शालिनी बसेड़िया (दीक्षित) का साहित्यिक योगदान अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं और मंचों के माध्यम से निरंतर जारी है। उन्होंने साहित्य सरोज, एवरग्रीन लेडी, कल्पकथा साहित्य मंच, सामाजिक कुरीतियों रचना कर मंच, तथा सनातन गौसेवा संस्थान में सक्रिय सदस्यता निभाई है। इसके साथ ही वे बुलंदी अंतरराष्ट्रीय साहित्य संस्था की साहित्यिक गतिविधियों से भी जुड़ी हुई हैं।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने डॉ. सत्य हॉप्स टॉक सामाजिक जागरूकता मंच में भी सामाजिक चेतना और जनजागरण से संबंधित उल्लेखनीय योगदान दिया है।
पुरस्कार एवं सम्मान –
शालिनी बसेड़िया (दीक्षित) को उनके उत्कृष्ट साहित्यिक एवं सामाजिक योगदान हेतु विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं –
- अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर द्वितीय स्थान प्राप्त।
- बुलंदी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित।
- कल्पकथा साहित्य संस्थान से विभिन्न सम्मान प्राप्त।
- सामाजिक कुरीतियों साहित्य सम्मान से अलंकृत।
उनकी एक कविता –
नारी…..
नारी तू नारी के काम क्यों नहीं आती है,
नारी तू नारी की दुश्मन क्यों बन जाती है।
नारी तू कोमल मनभावनी है,
नारी तू ईर्ष्या को अपना आभूषण क्यों बनाती है।
नारी तू ममता की मूरत कहलाती है,
नारी तू इतनी कमजोर क्यों बन जाती है।
नारी तू………….
नारी तू शीतल पवन उपवन धारा है,
नारी तू क्यों अग्नि धारण कर जाती है।
नारी तू पावन पुनीत धारा है,
नारी तू क्यों कुंठित हो जाती है।
नारी तू………….
नारी तू प्रेम पिपासा है,
नारी तू घृणा क्यों सजाती है।
नारी तू सृजनकर्ता है,
नारी तू विनाशनी क्यों बन जाती है।
– शालिनी बसेड़िया दीक्षित












