नई दिल्ली, 04 अप्रैल: देश के नौ तटीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 33.6 प्रतिशत तटरेखा में अलग-अलग स्तर का कटाव हो रहा है। इन राज्यों में छह हजार किलोमीटर से अधिकलंबी तटरेखा का विश्लेषण करने के बाद ये तथ्य उभरकर आये हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से संबद्ध राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर) वर्ष 1990 से रिमोट सेंसिंग डेटा तथा जीआईस मैपिंग तकनीकों का प्रयोग करते हुए तटरेखा में होने वाले कटाव की निगरानी कर रहा है। वर्ष 1990 से 2018 के दौरान भारतीय मुख्यभूमि की कुल 6,632 किलोमीटर लंबी तटरेखा का विश्वलेषण किया गया है, जिसमें से 2156 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा में कटाव होने का खुलासा हुआ है।
पश्चिम बंगाल की 534 किलोमीटर तटरेखा के सबसे अधिक 60 प्रतिशत हिस्से में कटाव हो रहा है। वहीं, 139.64 किलोमीटर लंबी गोवा की तटरेखा का सबसे कम 19 प्रतिशत हिस्सा कटाव का सामना कर रहा है। केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी, जिसकी तटरेखा मात्र 41.66 किलोमीटर लंबी है, के 56 प्रतिशत हिस्से में कटाव हो रहा है। गुजरात की करीब 1946 किलोमीटर लंबी तटरेखा का 27 प्रतिशत हिस्सा, महाराष्ट्र की 739 किलोमीटर तटरेखा का 25 प्रतिशत हिस्सा, कर्नाटक की 313 किलोमीटर लंबी तटरेखा का 23 प्रतिशत हिस्सा, केरल की करीब 593 किलोमीटर लंबी तटरेखा का 46 प्रतिशत हिस्सा, तमिलनाडु की 991 किलोमीटर तटरेखा का लगभग 43 प्रतिशत हिस्सा, आंध्र प्रदेश की 1027 किलोमीटर लंबी तटरेखा का करीब 28 प्रतिशत हिस्सा, और ओडिशा की 594 किलोमीटर लंबी तटरेखा के 25.6 प्रतिशत हिस्से में कटाव हो रहा है।
केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष, डॉ जितेंद्र सिंह द्वारा राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में इससे संबंधित जानकारी प्रदान की गई है। उन्होंने बताया कि तटीय कटाव के लिए चक्रवात की आवृत्ति में वृद्धि, लहरों एवं समुद्र स्तर में वृद्धि; बंदरगाहों का निर्माण एवं समुद्र तट पर खनन तथा बाँध निर्माण जैसी मानवजनित गतिविधियाँ मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कितटीय कटाव के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिए 526 मानचित्र तैयार किए गए हैं। इसमें 1:25000 पैमाने पर 66 जिला मानचित्र, 10 राज्य / संघ शासित प्रदेश मानचित्र शामिल हैं। जुलाई 2018 में ‘नेशनल एसेसमेंट ऑफ शोरलाइन चेन्चेज एलॉन्ग इंडियन कोस्ट’ नामक रिपोर्ट रिपोर्ट जारी की गई, जिसे राज्यों एवं केंद्र सरकार की विभिन्न एजेंसियों के साथ साझा किया गया, ताकि तटरेखा संरक्षण उपायों का कार्यान्वयन किया जा सके। इन सभी मानचित्रों की डिजिटल एवं हार्ड प्रतियां 25 मार्च 2022 को जारी की गई हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने बताया कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने तटीय कटाव शमन के नवोन्मेषी उपाय किये हैं। उन्होंने बताया कि पुडुचेरी तटीय जीर्णोद्धार परियोजना के अंतर्गत सबमर्ज्ड रीफ का कार्यान्वयन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा किया गया। इससे 30 वर्षों बाद शहर की 1.5 किलोमीटर लंबी समुद्री तटरेखा का जीर्णोद्धार किया गया, जिससे पर्यटन एवं मत्स्यपालन गतिविधियों में सुधार करने में मदद मिली है। इसके साथ ही, चरम चक्रवाती घटनाओं के दौरान तटीय संरक्षण में में भी मदद मिली है।
तमिलनाडु के कडालुर पेरिया कुप्पम में एक ऑफशोर सबमर्ज्ड डाइक कार्यान्वित किया गया है। इससे चरम चक्रवाती घटनाओं के दौरान मछुआरों के तीन गाँवों को सुरक्षित रखने में सहायता मिली है, और खो चुके समुद्र तट का जीर्णोद्धार संभव हो सका है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से संबद्ध राष्ट्रीय तटीय अनुसन्धान केंद्र (एनसीसीआर) केरल के चेलनम, कोल्लमकोड, पूनथुरा, वर्कला एवं शांगमुघम; ओडिशा के रामायपट्टनम, पुरी, कोणार्क एवं पेंथा; आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम; और गोवा की राज्य सरकारों को संवदेनशील स्थानों पर तटीय संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन हेतु तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रहा है। (इंडिया साइंस वायर)