नई दिल्ली: नवीकरणीय संसाधनों से प्राप्त ऊर्जा को ऊर्जा का स्थायी स्रोत माना जाता है।इससे तात्पर्य है कि यह कभी भी समाप्त नहीं होते हैं या फिर इनके खत्म होने की संभावना लगभग शून्य होती है। वहीं दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन जैसे तेल, गैस और कोयला जिन्हें ऊर्जा के सीमित संसाधन माना जाता है उनके संदर्भ में यह प्रबल संभावना है कि वह भविष्य में समाप्त हो जाएंगे।इन तथ्यों से आज समूचा विश्व परिचित है जिसके कारण नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयास किये जा रहे हैं।
हाल ही में जारी यूनेस्को द्वारा जून 2021 में जारी ‘साइंस रिपोर्ट: ‘द रेस अगेंस्ट टाइम फॉर स्मार्टर डेवलपमेंट’ के अनुसार नवीकरणीय ऊर्जा एकमात्र ऐसा ऊर्जा क्षेत्र है जिसमे कोविड-19 महामारी से उपजी उथल-पुथल के दौरान भी वृद्धि देखने को मिली है।
नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत हैअर्थात इसमें न्यूनतम कार्बन का उत्सर्जन होता है। जबकि इसके विपरीत जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैस और कार्बन डाइऑक्साइड का काफी अधिक उत्सर्जन करते हैं, जो कि ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और वायु की गुणवत्ता में गिरावट के लिये काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में बढ़ती मांग का श्रेय पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हुए प्रौद्योगिकी के विकास को जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में अनेक परियोजनाओ की भूमिका है। इन परियोजनाओं के माध्यम से वर्ष 2018में बिजली उत्पादन का 16 प्रतिशत पनबिजली,और10 प्रतिशत सौर,पवन, जैव-ईंधन और बायोमास के माध्यम से प्राप्तहुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के देश अपनी क्षमता के अनुरूप नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दे रहे हैं। पूर्वी अफ्रीका मेंजियो-थमर्ल बिजली अब 35 प्रतिशतसे अधिक केन्याईपरिवारो तक पहुंचाई जाती है।नवंबर 2019 में, केन्या ने जियो-थर्मल ऊर्जा का उत्पादन करने की क्षमता की दृष्टि से आइसलैंड को पीछे छोड़ते हुएदुनिया भर में आठवां स्थान प्राप्त किया। 2008 में नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर देने वाली नीति ‘केन्या विजन 2030’केलागू होने के बाद से वहाँ जियो-थमर्ल ऊर्जा के विकास में तेजी आई है।वहीं, मंगोलिया ने अपनी हरित विकास नीति के अनुसार 2030 तक कुल ऊर्जा खपत का 30 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से करने का लक्ष्य रखा है।
भारत भी लगातार नवीकरणीय ऊर्जा की ओर अग्रसर हुआ है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की दृष्टि से भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है और सभी प्रमुख देशों में अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में सबसे तीव्र गति से वृद्धि कर रहा है। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 136 गीगावाट है, जो इसकी कुल विद्युतक्षमता का लगभग 36 प्रतिशत है। वर्ष 2030 तक क्षमता वृद्धि का लक्ष्य 450 गीगावाट है जिसमें प्रतिवर्ष 25 गीगावाटकी वृद्धि हो रही है।
भारत ने फ्रांस के सहयोग से ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की नींव रखी है। इसमें सम्मिलित करीब 121 देश ऊर्जा के जीवाश्म ईंधनों से इतर विकल्पों को अपनाने के लिए एकजुट हुए हैं। इस सौर गठबंधन ki पहल पर वर्ष 2030 तक विश्व में सौर ऊर्जा के माध्यम से 1 ट्रिलियन वाट यानी 1000 गीगावाट ऊर्जा-उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सौर ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा के मोर्चे पर एक नई क्रांति की आधारशिला रखने के ठोस प्रयास आकार लेने लगे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस भी सौर ऊर्जा की दिशा में भारत की योजनाओं की सराहना कर चुके है। उन्होंने कहा है कि भारत यदि जीवाश्म ईंधन के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा पर काम करने की गति को तेज कर देता है, तो वह जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने सही मायनों में ग्लोबल सुपरपावर बन सकेगा। उन्होंने आगे कहा है कि भारत ने कोविड-19 महामारी के बीच नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में अच्छा उदाहरण पेश किया है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल 17 फीसदी से बढ़कर 24 फीसदी तक हो गया है वहीं कोयले से बनने वाला ईंधन 77 फीसदी से घटकर 66 फीसदी तक आ गया है।
इसी वर्ष केन्द्र सरकार ने अपने बजट में राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशनकी भी घोषणा की है, जो हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार करेगा। इस पहल में परिवहन क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव आने की संभवानाएं है। राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के तहत हाईड्रोजन का प्रयोग स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के रूप में किया जाएगा तो वहींइससे भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता भीमिलेगी। यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा।
भारतमें कई प्रौद्योगिकी संस्थानों ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतो की पहचान के लिए कई अहम खोज की है तो कई संस्थानों में इस दिशा में अनेक शोध प्रगति पर हैं।उदाहरण के तौर पर कुछ माह पूर्व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली ने ईको-फ्रेंडली इलेक्ट्रिक स्कूटर ‘होप’ लॉन्च किया था। यह स्कूटर, बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम, डाटा मॉनिटरिंग सिस्टम और पेडल असिस्ट यूनिट जैसी आधुनिक तकनीकों से युक्त है।
वर्ष 2020 में नीति आयोग और रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट द्वाराजारी साझा रिपोर्ट ‘टूर्वाडस ए क्लीन एनर्जी इकोनॉमी’ के अनुसार नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग से भारत का परिवहन क्षेत्र 1.7 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को रोक सकता है और 2030 तक साझा,इलेक्ट्रिक और कनेक्टेड यात्री आवाजाही और किफायती, स्वच्छ और अनुकूलित माल परिवहन के माध्यम से 600 मिलियन टन तेल बचा सकता है।
इस बात में कोई दोराय नही है कि नवीकरणीय ऊर्जा मौजूदा ऊर्जा स्त्रोतो का एक बेहतर विकल्प है लेकिन इस संदर्भ में कई चुनौतियां भी हैं। नवीकरणीय संसाधनों से ऊर्जा का उत्पादन पूर्णतः मौसम और जलवायु पर निर्भर करता है. यदि मौसम ऊर्जा उत्पादन के अनुकूल नहीं हुआ तो हम आवश्यकतानुसार ऊर्जा का उत्पादन नहीं कर पाएंगे। वहीं, नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक दक्षता की कमी है। फिर भी भारत सरकार इन चुनौतियों स्वीकार करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र को लगातारबढ़ावा दे रही है और वह दिन दूर नहींजब देश जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता खत्म कर एक उज्ज्वल और हरित भविष्य का निर्माण सुनिश्चित करेगा। (इंडिया साइंस वायर)